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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
    सूक्त - विरूपः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१

    उ॒क्षान्ना॑य व॒शान्ना॑य॒ सोम॑पृष्ठाय वे॒धसे॑। स्तोमै॑र्विधेमा॒ग्नये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒क्षऽअ॑न्नाय । व॒शाऽअ॑न्नाय । सोम॑ऽपृष्ठाय । वे॒धसे॑ । स्तोमै॑: । वि॒धे॒म॒ । अ॒ग्नये॑ ॥१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उक्षान्नाय वशान्नाय सोमपृष्ठाय वेधसे। स्तोमैर्विधेमाग्नये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उक्षऽअन्नाय । वशाऽअन्नाय । सोमऽपृष्ठाय । वेधसे । स्तोमै: । विधेम । अग्नये ॥१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 1; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (उक्षान्नाय) प्रबलों के अन्नदाता (वशान्नाय) वशीभूत [निर्बल प्रजाओं] के अन्नदाता, (सोमपृष्ठाय) ऐश्वर्य के सींचनेवाले (वेधसे) बुद्धिमान् (अग्नये) अग्नि [समान तेजस्वी राजा] की (स्तोमैः) स्तुतियोग्य कर्मों से (विधेम) हम पूजा करें ॥३॥

    भावार्थ - जिस प्रकार राजा अपने पराक्रम और धर्म-नीति से प्रजा का उपकार करे, वैसे ही प्रजागण योग्य रीति से राजा की सेवा करते रहें ॥–३॥

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