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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 90

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 90/ मन्त्र 1
    सूक्त - भरद्वाजः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९०

    यो अ॑द्रि॒भित्प्र॑थम॒जा ऋ॒तावा॒ बृह॒स्पति॑राङ्गिर॒सो ह॒विष्मा॑न्। द्वि॒बर्ह॑ज्मा प्राघर्म॒सत्पि॒ता न॒ आ रोद॑सी वृष॒भो रो॑रवीति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । अ॒द्रि॒ऽभित् । प्र॒थ॒म॒ऽजा: । ऋ॒तऽवा॑ । बृह॒स्पति: । आ॒ङ्गि॒र॒स: । ह॒विष्मा॑न् ॥ द्वि॒बर्ह॑ऽज्मा । प्रा॒घ॒र्म॒ऽसत् । पि॒ता । न॒: । आ । रोद॑सी॒ इति॑ । वृ॒ष॒भ: । रो॒र॒वी॒ति॒ ॥९०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो अद्रिभित्प्रथमजा ऋतावा बृहस्पतिराङ्गिरसो हविष्मान्। द्विबर्हज्मा प्राघर्मसत्पिता न आ रोदसी वृषभो रोरवीति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । अद्रिऽभित् । प्रथमऽजा: । ऋतऽवा । बृहस्पति: । आङ्गिरस: । हविष्मान् ॥ द्विबर्हऽज्मा । प्राघर्मऽसत् । पिता । न: । आ । रोदसी इति । वृषभ: । रोरवीति ॥९०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 90; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (यः) जो (अद्रिभित्) पहाड़ों को तोड़नेवाला, (प्रथमजाः) मुख्य पद पर प्रकट होनेवाला, (ऋतावा) सत्यवान्, (आङ्गिरसः) विद्वान् पुरुष का पुत्र (हविष्मान्) देने-लेने योग्य पदार्थोंवाला (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी विद्याओं का रक्षक राजा] है, वह (द्विबर्हज्मा) दोनों [विद्या और पुरुषार्थ] से प्रधानता पानेवाला, (प्राघर्मसत्) अच्छे प्रकार सब ओर से प्रताप का सेवन करनेवाला (नः) हमारा (पिता) पालनेवाला है, [जैसे] (वृषभः) जल बरसानेवाला मेघ (रोदसी) आकाश और पृथिवी में (आ) व्यापकर (रोरवीति) बल से गरजता है ॥१॥

    भावार्थ - राजा को चाहिये कि पहाड़ आदि कठिन स्थानों में मार्ग करके प्रजा का पालन करे, जैसे मेघ गर्जन के साथ वृष्टि करके संसार का उपकार करता है ॥१॥

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