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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृगुः देवता - वनस्पतिः, प्रजापतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - समृद्धि प्राप्ति सूक्त

    पय॑स्वती॒रोष॑धयः॒ पय॑स्वन्माम॒कं वचः॑। अथो॒ पय॑स्वतीना॒मा भ॑रे॒ऽहं स॑हस्र॒शः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पय॑स्वती: । ओष॑धय: । पय॑स्वत् । मा॒म॒कम् । वच॑: । अथो॒ इति॑ । पय॑स्वतीनाम् । आ । भ॒रे॒ । अ॒हम् । स॒हस्र॒ऽश: ॥२४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पयस्वतीरोषधयः पयस्वन्मामकं वचः। अथो पयस्वतीनामा भरेऽहं सहस्रशः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पयस्वती: । ओषधय: । पयस्वत् । मामकम् । वच: । अथो इति । पयस्वतीनाम् । आ । भरे । अहम् । सहस्रऽश: ॥२४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 24; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (ओषधयः) ओषधियाँ, चावल जौ आदि वस्तुएँ (पयस्वतीः=०-त्यः) सारवाली होवें, और (मामकम्) मेरा (वचः) वचन (पयस्वत्) सारवाला होवे। (अथो) और भी (अहम्) मैं (पयस्वतीनाम्) सारवाली [ओषधियों] का (सहस्रशः) सहस्रों प्रकार से (आ) यथाविधि (भरे) धारण करूँ ॥१॥

    भावार्थ - मनुष्य विद्यापूर्वक अन्न आदि पदार्थों को उत्तम बनावें और दृढ़ सत्य वचन बोलें। ऐसा करने से शारीरिक और आत्मिक उन्नति होती है ॥१॥ मनु महाराज का वचन है−उद्भिजाः स्थावराः सर्वे बीजकाण्डप्ररोहिणः। ओषध्यः फलपाकान्ता बहुपुष्पफलोपगाः ॥ मनु० १।४६ ॥ भूमि को फाड़कर उपजनेवाले, और बीज वा शाखा से उगनेवाले सब वृक्ष हैं, फल पाक के साथ नष्ट होनेवाली और बहुत फूल फलवाली ओषधियाँ [चावल, जौ आदि] हैं ॥१॥

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