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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 8

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 8/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वाङ्गिराः देवता - चन्द्रमाः, आपः, राज्याभिषेकः छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - राज्यभिषेक सूक्त

    भू॒तो भू॒तेषु॒ पय॒ आ द॑धाति॒ स भू॒ताना॒मधि॑पतिर्बभूव। तस्य॑ मृ॒त्युश्च॑रति राज॒सूयं॒ स राजा॒ रा॒ज्यमनु॑ मन्यतामि॒दम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भू॒त: । भू॒तेषु॑ । पय॑: । आ । द॒धा॒ति॒ । स: । भू॒ताना॑म् । अधि॑ऽपति: । ब॒भू॒व॒ । तस्य॑ । मृ॒त्यु: । च॒र॒ति॒ । रा॒ज॒ऽसूय॑म् । स: । राजा॑ । रा॒ज्यम् । अनु॑ । म॒न्य॒ता॒म् । इदम् ॥८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भूतो भूतेषु पय आ दधाति स भूतानामधिपतिर्बभूव। तस्य मृत्युश्चरति राजसूयं स राजा राज्यमनु मन्यतामिदम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भूत: । भूतेषु । पय: । आ । दधाति । स: । भूतानाम् । अधिऽपति: । बभूव । तस्य । मृत्यु: । चरति । राजऽसूयम् । स: । राजा । राज्यम् । अनु । मन्यताम् । इदम् ॥८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 8; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (भूतः) विभूति वा ऐश्वर्यवाला पुरुष (भूतेषु) सब स्थावर जंगम पदार्थों में (पयः) दूध, अन्न जल आदि (आ) अच्छे प्रकार (दधाति) धारण करता है, (सः) वही (भूतानाम्) प्राणी और अप्राणियों का (अधिपतिः) अधिष्ठाता (बभूव) हुआ है। (मृत्युः) मृत्यु [मारणसामर्थ्य] (तस्य) उसके (राजसूयम्) राजतिलक यज्ञ में (चरति) अनुचर होता है। (सः राजा) वह राजा (इदम् राज्यम्) इस राज्य को (अनु मन्यताम्) अङ्गीकार करे ॥१॥

    भावार्थ - जिस प्रतापी पुरुष को विद्वान् पुरुषों ने राजा बनाया है, वह अपनी बुद्धि, नीति और वीरता से प्रजा के प्राण और धन की रक्षा करता है और वही शिष्टों का पालन करके मृत्यु से बचाता और दुष्टों को दण्ड देकर मारता है ॥१॥

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