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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 123

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 123/ मन्त्र 3
    सूक्त - भृगु देवता - विश्वे देवाः छन्दः - द्विपदा साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - सौमनस्य सूक्त

    देवाः॒ पित॑रः॒ पित॑रो॒ देवाः॑। यो अस्मि॒ सो अ॑स्मि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    देवा॑: । पित॑र: । पित॑र: । देवा॑: । य: । अस्मि॑ । स: । अ॒स्मि॒ ॥१२३.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवाः पितरः पितरो देवाः। यो अस्मि सो अस्मि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवा: । पितर: । पितर: । देवा: । य: । अस्मि । स: । अस्मि ॥१२३.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 123; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (देवाः) विद्वान् लोग (पितरः) माननीय, और (पितरः) पालन करनेवाले लोग (देवाः) विजयी होते हैं। मैं (यः) चलने फिरनेवाला [उद्योगी] (अस्मि) हूँ, मैं ही (सः) दुःख मिटानेवाला (अस्मि) हूँ ॥३॥

    भावार्थ - विद्वान् ही परस्पर पालन करके विजयी, और आत्मविश्वासी और उद्योगी ही परस्पर सहायक होते हैं ॥३॥

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