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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 85

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 85/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मानाशन सूक्त

    यथा॑ वृ॒त्र इ॒मा आप॑स्त॒स्तम्भ॑ वि॒श्वधा॑ य॒तीः।ए॒वा ते॑ अ॒ग्निना॒ यक्ष्मं॑ वैश्वान॒रेण॑ वारये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । वृ॒त्र: । इ॒मा: । आप॑: । त॒स्तम्भ॑ । वि॒श्वधा॑ । य॒ती: । ए॒व । ते॒ । अ॒ग्निना॑ । यक्ष्म॑म् । वै॒श्वा॒न॒रेण॑ । वा॒र॒ये॒ ॥८५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा वृत्र इमा आपस्तस्तम्भ विश्वधा यतीः।एवा ते अग्निना यक्ष्मं वैश्वानरेण वारये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । वृत्र: । इमा: । आप: । तस्तम्भ । विश्वधा । यती: । एव । ते । अग्निना । यक्ष्मम् । वैश्वानरेण । वारये ॥८५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 85; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (यथा) जैसे (वृत्रः) मेघ ने (विश्वधा) सब ओर (यतीः) बहती हुई (इमाः) इन (आपः=अपः) जलधाराओं को (तस्तम्भ) रोका था। (एव) वैसे ही (ते) तेरे (यक्ष्मम्) राजरोग को (वैश्वानरेण) सब मनुष्यों के हित करनेवाले (अग्निना) अग्नि से (वारये) मैं हटाता हूँ ॥३॥

    भावार्थ - जैसे मेघ ईश्वरनियम से जल की भाफों को मेघमण्डल में रोक लेता है, उसी प्रकार वैद्य रोगी की पाचन शक्ति ठीक करके रोग को रोक दे ॥३॥

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