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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 89

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 89/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - वातः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - प्रीतिसंजनन सूक्त

    शो॒चया॑मसि ते॒ हार्दिं॑ शो॒चया॑मसि ते॒ मनः॑। वातं॑ धू॒म इ॑व स॒ध्र्यङ्मामे॒वान्वे॑तु ये॒ मनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शो॒चया॑मसि । ते॒ । हार्दि॑म् । शो॒चया॑मसि । ते॒ । मन॑: । वात॑म् । धू॒म:ऽइ॑व । स॒ध्र्य᳡ङ् । माम् । ए॒व । अनु॑ । ए॒तु॒ । ते॒ । मन॑: ॥८९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शोचयामसि ते हार्दिं शोचयामसि ते मनः। वातं धूम इव सध्र्यङ्मामेवान्वेतु ये मनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शोचयामसि । ते । हार्दिम् । शोचयामसि । ते । मन: । वातम् । धूम:ऽइव । सध्र्यङ् । माम् । एव । अनु । एतु । ते । मन: ॥८९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 89; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [हे शत्रु !] (ते) तेरी (हार्दिम्) हार्दिक शक्ति को (शोचयामसि) हम शोक में डालते हैं, (ते) तेरे (मनः) मन अर्थात् मनन सामर्थ्य को (शोचयामसि) हम शोक में डालते हैं। (ते) तेरा (मनः) मन (माम् एव अनु) मेरे ही पीछे-पीछे (एतु) चले, (इव) जैसे (सध्र्यङ्) [वायु से] मिला हुआ (धूमः) धुआँ (वातम्) वायु के [साथ-साथ चलता है] ॥२॥

    भावार्थ - बलवान् मनुष्य शत्रु को उसके शरीर और आत्मा से व्याकुल करके सदा अपने वश में रक्खे ॥२॥

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