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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 114

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 114/ मन्त्र 1
    सूक्त - भार्गवः देवता - अग्नीषोमौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    आ ते॑ ददे व॒क्षणा॑भ्य॒ आ ते॒ऽहं हृद॑याद्ददे। आ ते॒ मुख॑स्य॒ सङ्का॑शा॒त्सर्वं॑ ते॒ वर्च॒ आ द॑दे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ते॒ । द॒दे॒। व॒क्षणा॑भ्य: । आ । ते॒ । अ॒हम् । हृद॑यात् । द॒दे॒ । आ । ते॒ । मुख॑स्य । सम्ऽका॑शात् । सर्व॑म् । ते॒ । वर्च॑: । आ । द॒दे॒ ॥११९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ ते ददे वक्षणाभ्य आ तेऽहं हृदयाद्ददे। आ ते मुखस्य सङ्काशात्सर्वं ते वर्च आ ददे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । ते । ददे। वक्षणाभ्य: । आ । ते । अहम् । हृदयात् । ददे । आ । ते । मुखस्य । सम्ऽकाशात् । सर्वम् । ते । वर्च: । आ । ददे ॥११९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 114; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [हे शत्रु !] (अहम्) मैंने (ते) तेरी (वक्षणाभ्यः) छाती के अवयवों से [बल को] (आ ददे) ले लिया है, (ते) तेरे (हृदयात्) हृदय से (आ ददे) ले लिया है। (आ) और (ते) तेरे (मुखस्य) मुख के (संकाशात्) आकार से (ते) तेरे (सर्वम्) सब (वर्चः) ज्योति वा बल को (आ ददे) ले लिया है ॥१॥

    भावार्थ - मनुष्य अधार्मिक दोषों और शत्रुओं को नाश करें ॥१॥

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