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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 79

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 79/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - अमावस्या छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अमावस्य सूक्त

    आग॒न्रात्री॑ स॒ङ्गम॑नी॒ वसू॑ना॒मूर्जं॑ पु॒ष्टं वस्वा॑वे॒शय॑न्ती। अ॑मावा॒स्यायै ह॒विषा॑ विधे॒मोर्जं॒ दुहा॑ना॒ पय॑सा न॒ आग॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒ग॒न् । रात्री॑ । स॒म्ऽगम॑नी । वसू॑नाम् । ऊर्ज॑म् । पु॒ष्टम् । वसु॑ । आ॒ऽवे॒शय॑न्ती । अ॒मा॒ऽवा॒स्या᳡यै । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ । ऊर्ज॑म् । दुहा॑ना । पय॑सा । न॒: । आ । अ॒ग॒न् ॥८४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आगन्रात्री सङ्गमनी वसूनामूर्जं पुष्टं वस्वावेशयन्ती। अमावास्यायै हविषा विधेमोर्जं दुहाना पयसा न आगन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । अगन् । रात्री । सम्ऽगमनी । वसूनाम् । ऊर्जम् । पुष्टम् । वसु । आऽवेशयन्ती । अमाऽवास्यायै । हविषा । विधेम । ऊर्जम् । दुहाना । पयसा । न: । आ । अगन् ॥८४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 79; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (वसूनाम्) निवासस्थानों [लोकों] का (संगमनी) संयोग करनेवाली, (ऊर्जम्) पराक्रम और (पुष्टम्) पोषण और (वसु) धन (आवेशयन्ती) दान करती हुई (रात्री) सुख देनेवाली शक्ति (आ अगन्) आई है। (अमावास्यायै) उस अमावास्या [सबके साथ वास करनेवाली शक्ति, परमेश्वर] को (हविषा) आत्मदान [पूरण भक्ति] से (विधेम) हम पूजें, (ऊर्जम्) पराक्रम को (पयसा) ज्ञान के साथ (दुहाना) पूरण करती हुई वह (नः) हमें (आ अगन्) प्राप्त हुई है ॥३॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में (अमावास्यायै, वसूनाम्, वसु) पद [वस रहना] धातु से बने हैं। जो मनुष्य परमेश्वर के उत्पन्न किये पदार्थों से पुरुषार्थ और भक्ति के साथ उपकार लेते हैं, वे ही ऐश्वर्यवान् होते हैं ॥३॥

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