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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 8

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - प्राजापत्या अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स विशः॒सब॑न्धू॒नन्न॑म॒न्नाद्य॑म॒भ्युद॑तिष्ठत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स:। विश॑: । सऽब॑न्धून् । अन्न॑म् । अ॒न्न॒ऽअद्य॑म् । अ॒भि॒ऽउद॑तिष्ठत् ॥८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स विशःसबन्धूनन्नमन्नाद्यमभ्युदतिष्ठत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स:। विश: । सऽबन्धून् । अन्नम् । अन्नऽअद्यम् । अभिऽउदतिष्ठत् ॥८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 8; मन्त्र » 2

    Meaning -
    He rose to control, organise and socially rule the people, his own fraternity, and to provide them with food and delicacies of life with good health.

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