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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 29

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 29/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त

    पि॒ण्ड्ढि द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे पि॒ण्ड्ढि मे॑ पृतनाय॒तः। पि॒ण्ड्ढि मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ पि॒ण्ड्ढि मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पि॒ण्ड्ढि। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। पि॒ण्ड्ढि। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। पि॒ण्ड्ढि। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। पि॒ण्ड्ढि। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पिण्ड्ढि दर्भ सपत्नान्मे पिण्ड्ढि मे पृतनायतः। पिण्ड्ढि मे सर्वान्दुर्हार्दो पिण्ड्ढि मे द्विषतो मणे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पिण्ड्ढि। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। पिण्ड्ढि। मे। पृतनाऽयतः। पिण्ड्ढि। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। पिण्ड्ढि। मे। द्विषतः। मणे ॥२९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 29; मन्त्र » 6

    Meaning -
    O Darbha, destroyer of destroyers, batter all my rivals, batter all my adversaries, O Mani, batter all the evil hearted ranged against me, batter all the jealous forces active against me.

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