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  • यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 14
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - पिपीलिकामध्या निचृदगायत्री स्वरः - षड्जः
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    दे॒वस्य॑ सवि॒तुर्म॒तिमा॑स॒वं वि॒श्वदे॑व्यम्। धि॒या भगं॑ मनामहे॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। म॒तिम्। आ॒स॒वमित्या॑ऽस॒वम्। वि॒श्वदे॑व्य॒मिति॑ वि॒श्वऽदे॑व्यम्। धि॒या। भग॑म्। म॒ना॒म॒हे॒। १४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवस्य सवितुर्मतिमासवँविश्वदेव्यम् । धिया भगम्मनामहे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवस्य। सवितुः। मतिम्। आसवमित्याऽसवम्। विश्वदेव्यमिति विश्वऽदेव्यम्। धिया। भगम्। मनामहे।१४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 22; मन्त्र » 14
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    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी परमेश्वराची उपासना करून उत्तम बुद्धी प्राप्त करावी व त्याच्यापाशी पूर्ण ऐश्वर्याची याचना करून सर्व प्राण्यांचे सम्यक रीतीने हित सिद्ध करावे.

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