अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 45/ मन्त्र 6
सूक्त - भृगुः
देवता - आञ्जनम्
छन्दः - एकावसाना विराण्महाबृहती
सूक्तम् - आञ्जन सूक्त
अ॒ग्निर्मा॒ग्निना॑वतु प्रा॒णाया॑पा॒नायायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निः। मा॒। अ॒ग्निना॑। अ॒व॒तु॒। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नाय॑। आयु॑षे। वर्च॑से। ओज॑से। तेज॑से। स्व॒स्तये॑। सु॒ऽभू॒तये॑। स्वाहा॑ ॥४५.६॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निर्माग्निनावतु प्राणायापानायायुषे वर्चस ओजसे तेजसे स्वस्तये सुभूतये स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठअग्निः। मा। अग्निना। अवतु। प्राणाय। अपानाय। आयुषे। वर्चसे। ओजसे। तेजसे। स्वस्तये। सुऽभूतये। स्वाहा ॥४५.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 45; मन्त्र » 6
Subject - To other Gods
Translation -
May the adorable Lord preserve me with vital heat for inbreath, for out-breath, for long life, for lustre, for vigour, for majesty, for weal, for good prosperity. Svahà.