ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 32/ मन्त्र 1
ऋषि: - मेधातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
प्र कृ॒तान्यृ॑जी॒षिण॒: कण्वा॒ इन्द्र॑स्य॒ गाथ॑या । मदे॒ सोम॑स्य वोचत ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । कृ॒तानि॑ । ऋ॒जी॒षिणः॑ । कण्वाः॑ । इन्द्र॑स्य । गाथ॑या । मदे॑ । सोम॑स्य । वो॒च॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र कृतान्यृजीषिण: कण्वा इन्द्रस्य गाथया । मदे सोमस्य वोचत ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । कृतानि । ऋजीषिणः । कण्वाः । इन्द्रस्य । गाथया । मदे । सोमस्य । वोचत ॥ ८.३२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 32; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
पदार्थ -
(ऋजीषिणः) विभिन्न विद्याओं के उपार्जन में दक्ष (कण्वाः) मेधावी जन (सोमस्य मदे) विद्या से सम्पादित ऐश्वर्यकारक शास्त्रबोध की (मदे) उमङ्ग में (गाथया) गीतों में (इन्द्रस्य) प्रभु, राजा, विद्युत्, सूर्य आदि के (कृतानि) कृत्यों को (प्र वोचत) हमें सुनाएं ॥१॥
भावार्थ - विविध शास्त्रों में पारंगत ऐश्वर्यवान् जन परमेश्वर आदि का गुणगान कर सकते हैं ॥१॥
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