Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 33 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 33/ मन्त्र 15
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    अ॒स्माक॑म॒द्यान्त॑मं॒ स्तोमं॑ धिष्व महामह । अ॒स्माकं॑ ते॒ सव॑ना सन्तु॒ शंत॑मा॒ मदा॑य द्युक्ष सोमपाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्माक॑म् । अ॒द्य । अन्त॑मम् । स्तोम॑म् । धि॒ष्व॒ । म॒हा॒ऽम॒ह॒ । अ॒स्माक॑म् । ते॒ । सव॑ना । स॒न्तु॒ । शम्ऽत॑मा । मदा॑य । द्यु॒क्ष॒ । सो॒म॒ऽपाः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्माकमद्यान्तमं स्तोमं धिष्व महामह । अस्माकं ते सवना सन्तु शंतमा मदाय द्युक्ष सोमपाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्माकम् । अद्य । अन्तमम् । स्तोमम् । धिष्व । महाऽमह । अस्माकम् । ते । सवना । सन्तु । शम्ऽतमा । मदाय । द्युक्ष । सोमऽपाः ॥ ८.३३.१५

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 33; मन्त्र » 15
    अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 9; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    हे (महामह) परमेश्वर! (अद्य) अब शीघ्र ही (अन्तमम्) सर्व दुःखहर्ता (स्तोमम्) स्तुत्य गुण-कर्म-स्वभाव को (अस्माकम्) हमें धारण कराएं। (हे सोमपाः) उत्पादित पदार्थों के द्वारा सबकी रक्षा करने वाले! (द्युक्ष-स्व )ओज से प्रदीप्त प्रभु! (ते) आपकी (सवना) प्रेरणाएं जो (शंतमा) अति सुखदायक हैं, वे (अस्माकम्) हमें (मदाय सन्तु) आनन्दित करें ॥१५॥

    भावार्थ - भगवान् की प्रेरणा से ही मनुष्य श्लाघा करने योग्य गुण-कर्म-स्वभाव को पाता है और जीवन में आनन्द करता है॥१५॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top