ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 37/ मन्त्र 7
श्या॒वाश्व॑स्य॒ रेभ॑त॒स्तथा॑ शृणु॒ यथाशृ॑णो॒रत्रे॒: कर्मा॑णि कृण्व॒तः । प्र त्र॒सद॑स्युमाविथ॒ त्वमेक॒ इन्नृ॒षाह्य॒ इन्द्र॑ क्ष॒त्राणि॑ व॒र्धय॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठश्या॒वऽअ॑श्वस्य । रेभ॑तः । तथा॑ । शृ॒णु॒ । यथा॑ । अशृ॑णोः । अत्रेः॑ । कर्मा॑णि । कृ॒ण्व॒तः । प्र । त्र॒सद॑स्युम् । आ॒वि॒थ॒ । त्वम् । एकः॑ । इत् । नृ॒ऽसह्ये॑ । इन्द्र॑ । ब्रह्मा॑णि । व॒र्धय॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
श्यावाश्वस्य रेभतस्तथा शृणु यथाशृणोरत्रे: कर्माणि कृण्वतः । प्र त्रसदस्युमाविथ त्वमेक इन्नृषाह्य इन्द्र क्षत्राणि वर्धयन् ॥
स्वर रहित पद पाठश्यावऽअश्वस्य । रेभतः । तथा । शृणु । यथा । अशृणोः । अत्रेः । कर्माणि । कृण्वतः । प्र । त्रसदस्युम् । आविथ । त्वम् । एकः । इत् । नृऽसह्ये । इन्द्र । ब्रह्माणि । वर्धयन् ॥ ८.३७.७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 37; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 7
पदार्थ -
हे इन्द्र--शासक! (त्वम् एक इत्) आप अकेले ही (नृषाह्ये) राष्ट्र नेताओं के सम्मिलन के समय (क्षत्राणि) क्षत्रिय कुलों को (वर्धयन्) प्रोत्साहित करते हुए (त्रसदस्यु) दस्यु को मार भगाने वाले वीरता के गुण को (आविथ) सहारा प्रदान करते हैं। आप (कर्माणि कुर्वतः) कर्मरत रहने वाले (अत्रेः) सुख भोक्ता की स्तुति को (यथा अशृणोः) जैसे सुनते हैं तथा उसी प्रकार (रेभतः) स्तुतिकर्ता (श्यावाश्वस्य) प्रगतिशील इन्द्रिय शक्तियों से सम्पन्न व्यक्ति द्वारा की गई स्तुति को सुनें॥७॥
भावार्थ - राजा स्वराष्ट्र में स्थित क्षात्रकुलों को प्रोत्साहन प्रदान करे और इस प्रकार दस्युओं को राज्य से दूर भगाए॥७॥ विशेषः-यहाँ राजा के प्रतीक इन्द्र का वर्णन है॥ अष्टम मण्डल में सैंतीसवाँ सूक्त व उनीसवाँ वर्ग समाप्त॥
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