ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 46/ मन्त्र 30
ऋषिः - वशोऽश्व्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - आर्चीस्वराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
गावो॒ न यू॒थमुप॑ यन्ति॒ वध्र॑य॒ उप॒ मा य॑न्ति॒ वध्र॑यः ॥
स्वर सहित पद पाठगावः॑ । न । यू॒थम् । उप॑ । य॒न्ति॒ । वध्र॑यः । उप॑ । मा॒ । य॒न्ति॒ । वध्र॑यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
गावो न यूथमुप यन्ति वध्रय उप मा यन्ति वध्रयः ॥
स्वर रहित पद पाठगावः । न । यूथम् । उप । यन्ति । वध्रयः । उप । मा । यन्ति । वध्रयः ॥ ८.४६.३०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 46; मन्त्र » 30
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
पदार्थ -
(वध्रयः) अतिवृद्ध [ऋ० द०] बैल (न) जैसे (गावः) गायों के अपने (यूथम्) समूह का (उप यन्ति) आश्रय लेते हैं; ऐसे ही (व्रधयः) [धन आदि से] निर्बल जन (मा उपयन्ति) मेरा आश्रय ग्रहण करते हैं॥३०॥
भावार्थ - वैभवशाली लोग यह समझें कि निर्धन जनों का भरण-पोषण करना उनका कर्त्तव्य है॥३०॥
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