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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 46/ मन्त्र 31
    ऋषिः - वशोऽश्व्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अध॒ यच्चार॑थे ग॒णे श॒तमुष्ट्राँ॒ अचि॑क्रदत् । अध॒ श्वित्ने॑षु विंश॒तिं श॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । यत् । चार॑थे । ग॒णे । श॒तम् । उष्ट्रा॑न् । अचि॑क्रदत् । अध॑ । श्वित्ने॑षु । विं॒श॒तिम् । श॒ता ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अध यच्चारथे गणे शतमुष्ट्राँ अचिक्रदत् । अध श्वित्नेषु विंशतिं शता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध । यत् । चारथे । गणे । शतम् । उष्ट्रान् । अचिक्रदत् । अध । श्वित्नेषु । विंशतिम् । शता ॥ ८.४६.३१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 46; मन्त्र » 31
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (अध) अनन्तर (यत्) जब (चारथे) अपने चलते हुए (गणे) समूह में से (शतम्, उष्ट्रान्) सैकड़ों ऊँटों को (अध) और उसके बाद (श्वित्रेषु) शुभ्रवर्ण के पशुओं में से (विंशतिं शता) दो सहस्रों का (अचिक्रदत्) आह्वान करता है॥३१॥

    भावार्थ - वैभवसम्पन्न व्यक्ति (इन्द्र) अपने यहाँ एकत्रित ऊँट आदि पशुओं में से अनेक को दान करने का संकल्प व्यक्त करता है॥३१॥

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