ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 46/ मन्त्र 33
अध॒ स्या योष॑णा म॒ही प्र॑ती॒ची वश॑म॒श्व्यम् । अधि॑रुक्मा॒ वि नी॑यते ॥
स्वर सहित पद पाठअध॑ । स्या । योष॑णा । म॒ही । प्र॒ती॒ची । वश॑म् । अ॒श्व्यम् । अधि॑ऽरुक्मा । वि । नी॒य॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अध स्या योषणा मही प्रतीची वशमश्व्यम् । अधिरुक्मा वि नीयते ॥
स्वर रहित पद पाठअध । स्या । योषणा । मही । प्रतीची । वशम् । अश्व्यम् । अधिऽरुक्मा । वि । नीयते ॥ ८.४६.३३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 46; मन्त्र » 33
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 8
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 8
पदार्थ -
(अथ) वैभव दिलाने के बाद (मही) महती पूज्या (प्रतीची) अनुकूल (स्या) प्रसिद्ध (अधिरुक्मा) सुवर्णालङ्कार से विभूषित (योषणा) स्त्री (अश्व्यं वशम्) संयमी विद्वान् की ओर (विनीयते) विनयपूर्वक भेजी जाती है॥३३॥
भावार्थ - ज्ञान, अन्न, यश आदि की यथेच्छ प्राप्ति के बाद ही व्यक्ति को अनुकूल एवं विनयी स्त्री से विवाह करना उचित है॥३३॥ अष्टम मण्डल में छियालीसवाँ सूक्त व छठा वर्ग समाप्त॥
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