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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 53/ मन्त्र 1
    ऋषि: - मेध्यः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्बृहती स्वरः - मध्यमः

    उ॒प॒मं त्वा॑ म॒घोनां॒ ज्येष्ठं॑ च वृष॒भाणा॑म् । पू॒र्भित्त॑मं मघवन्निन्द्र गो॒विद॒मीशा॑नं रा॒य ई॑महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒ऽमम् । त्वा॒ । म॒घोना॑म् । ज्येष्ठ॑म् । च॒ । वृ॒ष॒भाणा॑म् । पु॒र्भित्ऽत॑मम् । म॒घ॒ऽव॒न् । इ॒न्द्र॒ । गो॒ऽविद॑म् । ईशा॑नम् । रा॒यः । ई॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपमं त्वा मघोनां ज्येष्ठं च वृषभाणाम् । पूर्भित्तमं मघवन्निन्द्र गोविदमीशानं राय ईमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽमम् । त्वा । मघोनाम् । ज्येष्ठम् । च । वृषभाणाम् । पुर्भित्ऽतमम् । मघऽवन् । इन्द्र । गोऽविदम् । ईशानम् । रायः । ईमहे ॥ ८.५३.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 53; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    हे (मघवन्) पूज्य ऐश्वर्य प्राप्ति के निमित्त! (इन्द्र) ऐश्वर्यवान् प्रभो। (मघोनाम्) उदारजनों में (उपमम्) दृष्टान्तस्वरूप, (वृषभाणाम्) सुख आदि के दाताओं में ज्येष्ठ प्रशंसनीय, (पूर्भित्तमं) [दुष्टों की] रक्षा पंक्तियों को नष्ट करने वाले, (गोविदम्) पृथ्वी आदि पदार्थों के प्रापक, (ईशानम्) ऐश्वर्य के लिये सृष्टि के कर्ता, (राये) दानभावना से सुसंस्कृत ऐश्वर्य हेतु (त्वाम्) आपको (ईमहे) प्राप्त करें अथवा जानें॥१॥

    भावार्थ - संसार का अधिपति नितान्त उदार है; ऐश्वर्य प्राप्त करने का एकमात्र उपाय उसे जानकर उसके गुणों का आधान ही है; इस प्रकार उससे अधिष्ठित तथा पूजित ऐश्वर्य हम प्राप्त करते हैं॥१॥

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