ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 53/ मन्त्र 6
आ॒जि॒तुरं॒ सत्प॑तिं वि॒श्वच॑र्षणिं कृ॒धि प्र॒जास्वाभ॑गम् । प्र सू ति॑रा॒ शची॑भि॒र्ये त॑ उ॒क्थिन॒: क्रतुं॑ पुन॒त आ॑नु॒षक् ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒जि॒ऽतुर॑म् । सत्ऽप॑तिम् । वि॒श्वऽच॑र्षणिम् । कृ॒धि । प्र॒ऽजासु॑ । आऽभ॑गम् । प्र । सु । ति॒र॒ । शची॑भिः॒ । ये । ते॒ । उ॒क्थिनः॑ । क्रतु॑म् । पु॒न॒ते । आ॒नु॒षक् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आजितुरं सत्पतिं विश्वचर्षणिं कृधि प्रजास्वाभगम् । प्र सू तिरा शचीभिर्ये त उक्थिन: क्रतुं पुनत आनुषक् ॥
स्वर रहित पद पाठआजिऽतुरम् । सत्ऽपतिम् । विश्वऽचर्षणिम् । कृधि । प्रऽजासु । आऽभगम् । प्र । सु । तिर । शचीभिः । ये । ते । उक्थिनः । क्रतुम् । पुनते । आनुषक् ॥ ८.५३.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 53; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
पदार्थ -
हे प्रभो! आप (प्रजासु) हमारी सन्तान को (आजितुरम्) संघर्ष में पार लगाने वाले, (सत्पतिम्) सज्जनों के पालन के साधक (विश्वचर्षणिम्) सभी मनुष्यों के रक्षासाधन (भगम्) ऐश्वर्य (आकृधि) प्रदान करो। ये जो (उक्थिनः) स्तोता (ते) आप की (आ नुषक्) अनुकूलता सहित (क्रतुम्) प्रशस्त यज्ञ कर्म (पुनते) करते हैं उन्हें (शचीभिः) कर्तृत्व व प्रज्ञाशक्तियों के द्वारा (सुप्रतिर) सम्यक्तया खूब बढ़ाएं॥६॥
भावार्थ - मानव के ऐश्वर्य का प्रयोजन सज्जनों तथा सभी मनुष्यों की रक्षा हो। जो लोग ईश्वरीय आज्ञा के अनुसार, उसके अनुकूल, अपना बर्ताव रखे उसकी बुद्धि तीव्र होती है और वह सदैव कर्मठ रहता है॥६॥
इस भाष्य को एडिट करें