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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 56 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 56/ मन्त्र 3
    ऋषिः - पृषध्रः काण्वः देवता - प्रस्कण्वस्य दानस्तुतिः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    श॒तं मे॑ गर्द॒भानां॑ श॒तमूर्णा॑वतीनाम् । श॒तं दा॒साँ अति॒ स्रज॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम् । मे॒ । ग॒र्द॒भाना॑म् । श॒तम् । ऊर्णा॑ऽवतीनाम् । श॒तम् । दा॒सान् । अति॑ । स्रजः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतं मे गर्दभानां शतमूर्णावतीनाम् । शतं दासाँ अति स्रज: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतम् । मे । गर्दभानाम् । शतम् । ऊर्णाऽवतीनाम् । शतम् । दासान् । अति । स्रजः ॥ ८.५६.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 56; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    वह धनाढ्य (मे) मुझ स्तोता को (शतं गर्दभानाम्) सैकड़ों गधे आदि पशु (ऊर्णावतीनां शतम्) सैकड़ों ऊन वाले पशु व (शतं दासान्) सैकड़ों कार्य में मदद देने वाले सहायकों को [दासः दासतेर्दानकर्मणः] (अतिस्रजः) देता है॥३॥

    भावार्थ - ऐश्वर्य-अधिपति जहाँ भाँति-भाँति के पशुओं का पालन कर उनसे विविध कार्य ले सकता है वहाँ वह अपने कार्यों में सहायकों की नियुक्ति कर उनका पालन भी कर सकता है॥३॥

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