ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 85/ मन्त्र 6
गच्छ॑तं दा॒शुषो॑ गृ॒हमि॒त्था स्तु॑व॒तो अ॑श्विना । मध्व॒: सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठगच्छ॑तम् । दा॒शुषः॑ । गृ॒हम् । इ॒त्था । स्तु॒व॒तः । अ॒श्वि॒ना॒ । मध्वः॑ । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
गच्छतं दाशुषो गृहमित्था स्तुवतो अश्विना । मध्व: सोमस्य पीतये ॥
स्वर रहित पद पाठगच्छतम् । दाशुषः । गृहम् । इत्था । स्तुवतः । अश्विना । मध्वः । सोमस्य । पीतये ॥ ८.८५.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 85; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
पदार्थ -
(अश्विना) उपदेष्टा व शिक्षक इन दो वर्गों के बलशाली विद्वान् (मध्वः) माधुर्य आदि गुणयुक्त (सोमस्य) सुख बढ़ाने वाले पदार्थबोध को (पीतये) देने हेतु (इत्था स्तुवतः) इस प्रकार भली-भाँति प्रशंसा करते हुए (दाशुषः) दानशील आत्मसमर्पक उपासक के (गृहम्) घर (आ गच्छतम्) आ जाते हैं॥६॥
भावार्थ - शिक्षकों एवं उपदेशकों के प्रशंसक उपासकों को विभिन्न पदार्थों में गुणों का ज्ञान प्रदान करते हेतु तो अध्यापक व उपदेशक जन स्वयमेव उनके गृहों पर जा कर उन्हें ज्ञान देते हैं॥६॥
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