ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 85/ मन्त्र 5
छ॒र्दिर्य॑न्त॒मदा॑भ्यं॒ विप्रा॑य स्तुव॒ते न॑रा । मध्व॒: सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठछ॒र्दिः । य॒न्त॒म् । अदा॑भ्यम् । विप्रा॑य । स्तु॒व॒ते । न॒रा॒ । मध्वः॑ । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
छर्दिर्यन्तमदाभ्यं विप्राय स्तुवते नरा । मध्व: सोमस्य पीतये ॥
स्वर रहित पद पाठछर्दिः । यन्तम् । अदाभ्यम् । विप्राय । स्तुवते । नरा । मध्वः । सोमस्य । पीतये ॥ ८.८५.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 85; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
पदार्थ -
(नरा) नर-नारी (मध्वः सोमस्य पीतये) माधुर्य आदि गुणयुक्त (सोमस्य) शास्त्रबोध की प्राप्ति हेतु या प्रभु द्वारा सृष्ट सुखदायक पदार्थों को भली-भाँति समझने हेतु, (स्तुवते) गुण वर्णन करते (विप्राय) बुद्धिमान् विद्वान् के लिये (अदाभ्यम्) अहिंसनीय (छर्दिः) आश्रय (यन्त) लें॥५॥
भावार्थ - जो सुशिक्षित नर-नारी पदार्थों के गुणावगुण को भली-भाँति जानना चाहें, उन्हें बुद्धिमानों को आश्रय देकर, उनकी सर्व प्रकार रक्षा कर, उनसे बोध पाना चाहिए॥५॥
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