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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 85/ मन्त्र 4
    ऋषिः - कृष्णः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    शृ॒णु॒तं ज॑रि॒तुर्हवं॒ कृष्ण॑स्य स्तुव॒तो न॑रा । मध्व॒: सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शृ॒णु॒तम् । ज॒रि॒तुः । हव॑म् । कृष्ण॑स्य । स्तु॒व॒तः । न॒रा॒ । मध्वः॑ । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शृणुतं जरितुर्हवं कृष्णस्य स्तुवतो नरा । मध्व: सोमस्य पीतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शृणुतम् । जरितुः । हवम् । कृष्णस्य । स्तुवतः । नरा । मध्वः । सोमस्य । पीतये ॥ ८.८५.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 85; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (नरा) सुशिक्षित नर-नारी (मध्वः) माधुर्य आदि गुणयुक्त (सोमस्य) सुखदाता शास्त्रबोध का (पीतये) पान कर, उसे प्राप्त करने हेतु (जरितुः) विद्यागुणप्रकाशक (स्तुवतः) गुणवर्णन करते हुए (कृष्णस्य) संशयों को नष्ट करनेवाले विद्वान् के (हवम्) वचन (शृणुतम्) सुनें॥४॥

    भावार्थ - जिस उपदेशक का दैनिक कार्य ही संशय मिटाना है, उसके वचनों को सुनकर नर-नारी सरलता से पदार्थों के गुणों का ज्ञान पा सकते हैं; अतएव यह प्रयत्न आवश्यक है॥४॥

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