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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 89 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 89/ मन्त्र 3
    ऋषिः - नृमेधपुरुमेधौ देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    प्र व॒ इन्द्रा॑य बृह॒ते मरु॑तो॒ ब्रह्मा॑र्चत । वृ॒त्रं ह॑नति वृत्र॒हा श॒तक्र॑तु॒र्वज्रे॑ण श॒तप॑र्वणा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । वः॒ । इन्द्रा॑य । बृ॒ह॒ते । मरु॑तः । ब्रह्म॑ । अ॒र्च॒त॒ । वृ॒त्रम् । ह॒न॒ति॒ । वृ॒त्र॒ऽहा । श॒तऽक्र॑तुः । वज्रे॑ण । श॒तऽप॑र्वणा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र व इन्द्राय बृहते मरुतो ब्रह्मार्चत । वृत्रं हनति वृत्रहा शतक्रतुर्वज्रेण शतपर्वणा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । वः । इन्द्राय । बृहते । मरुतः । ब्रह्म । अर्चत । वृत्रम् । हनति । वृत्रऽहा । शतऽक्रतुः । वज्रेण । शतऽपर्वणा ॥ ८.८९.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 89; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    हे (मरुतः) उपासक विद्वानो! तुम उस (बृहते) महान् (इन्द्राय) प्रभु की (ब्रह्म अर्चत) वेदवाणी से वन्दना करो; वह (शतक्रतुः) सैकड़ों प्रकार के ज्ञानों तथा कर्मों का प्रमुख, (वृत्रहा) विघ्नकारकों का विध्वंसक (शतपर्वणा) सैकड़ों विभागों वाले वज्ररूप ज्ञान से (वृत्रम्) अज्ञान को (हनति) हरता है॥३॥ महर्षि दयानन्द ने यजुर्वेद के (३३:९६) इसी मन्त्र का अर्थ इस भाँति किया हैः-“हे मनुष्यो! जो (शतक्रतुः) असंख्य प्रकार की वृद्धि व कर्मों वाला सेनापति (शतपर्वणा) असंख्य जीवों के पालन के साधन (वज्रेण) शस्त्रास्त्र से (वृत्रहन्ता) जैसे मेघहन्ता सूर्य (वृत्रम्) मेघ को मारता है वैसे (बृहते) बड़े (इन्द्राय) परमैश्वर्य के लिये शत्रुओं को मारता है और (वः) तुम्हारे लिये (ब्रह्म) धन व अन्न को प्राप्त करता है, उसका तुम लोग (अर्चत) सत्कार करो॥३॥

    भावार्थ - हे मनुष्यो! सूर्य जैसे मेघ को नष्ट करता है वैसे जो लोग शत्रुओं को मार कर तुम्हारे ऐश्वर्य को बढ़ाते हैं, उनका तुम सत्कार करो। इस प्रकार कृतज्ञ होकर महान् ऐश्वर्य पाओ॥३॥

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