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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 90 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 90/ मन्त्र 3
    ऋषिः - नृमेधपुरुमेधौ देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्बृहती स्वरः - मध्यमः

    ब्रह्मा॑ त इन्द्र गिर्वणः क्रि॒यन्ते॒ अन॑तिद्भुता । इ॒मा जु॑षस्व हर्यश्व॒ योज॒नेन्द्र॒ या ते॒ अम॑न्महि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्म॑ । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । गि॒र्व॒णः॒ । क्रि॒यन्ते॑ । अन॑तिद्भुता । इ॒मा । जु॒ष॒स्व॒ । ह॒रि॒ऽअ॒श्व॒ । योज॑ना । इन्द्र॑ । या । ते॒ । अम॑न्महि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्मा त इन्द्र गिर्वणः क्रियन्ते अनतिद्भुता । इमा जुषस्व हर्यश्व योजनेन्द्र या ते अमन्महि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्म । ते । इन्द्र । गिर्वणः । क्रियन्ते । अनतिद्भुता । इमा । जुषस्व । हरिऽअश्व । योजना । इन्द्र । या । ते । अमन्महि ॥ ८.९०.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 90; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    हे (गिर्वणः) योगियों की योग संस्कारयुक्त वाणी से वर्णन करने योग्य (इन्द्र) प्रभु! (ते) आपके हेतु (अनतिद्भुता) अतिशयोक्तिरहित (ब्रह्म) स्तुतिवचन [वेद में] (क्रियन्ते) किये गए हैं। हे (इन्द्र) प्रभो! (या) जिन वेदोक्त स्तुतिवचनों का हम (ते) आपके लिये (अमन्महि) उच्चारण करते हैं, (इमाः) इन (योजना) सम्यक्तया आपके हेतु उपयुक्त स्तुतिवचनों को हे (हर्यश्व) सुख प्रदाता वेगवती अश्वसदृश शक्तियों वाले परमप्रभु आप, (जुषस्व) सेवन करें। ३॥

    भावार्थ - प्रभु के गुणों का जो वर्णन वेदवाणी में है, वह सर्वथा स्वाभाविक है। जब साधक उन्हीं शब्दों में प्रभु के गुणों की स्तुति करता है, तब उसे यह आशा होनी स्वाभाविक है कि उन गुणों को धारण करने का प्रयास करने वाले साधक को भगवान् की सायुज्यता प्राप्त होगी॥३॥

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