अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 29/ मन्त्र 4
मृ॒ण द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे मृ॒ण मे॑ पृतनाय॒तः। मृ॒ण मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ मृ॒ण मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥
स्वर सहित पद पाठमृ॒ण। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। मृ॒ण। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। मृ॒ण। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। मृ॒ण। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२९.४॥
स्वर रहित मन्त्र
मृण दर्भ सपत्नान्मे मृण मे पृतनायतः। मृण मे सर्वान्दुर्हार्दो मृण मे द्विषतो मणे ॥
स्वर रहित पद पाठमृण। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। मृण। मे। पृतनाऽयतः। मृण। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। मृण। मे। द्विषतः। मणे ॥२९.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 29; मन्त्र » 4
सूचना -
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः - ४−(मृण) मृण हिंसायाम्। मारय ॥
इस भाष्य को एडिट करें