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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 38

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 38/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - गुल्गुलुः छन्दः - एकावसाना प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त

    उ॒भयो॑रग्रभं॒ नामा॒स्मा अ॑रि॒ष्टता॑तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उभयोः॑। अ॒ग्र॒भ॒म्। नाम॑। अ॒स्मै। अ॒रि॒ष्टऽता॑तये ॥३८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उभयोरग्रभं नामास्मा अरिष्टतातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उभयोः। अग्रभम्। नाम। अस्मै। अरिष्टऽतातये ॥३८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 38; मन्त्र » 3

    टिप्पणीः - ३−(उभयोः) द्वयोः (अग्रभम्) अग्रहीषम् (नाम) संज्ञाम् (अस्मै) पुरुषाय (अरिष्टतातये) अ०३।५।५। शिवशमरिष्टस्य करे पा०४।४।१४३। इति अरिष्ट-तातिल् करोत्यर्थे। क्षेमकरणाय ॥

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