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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 39

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 39/ मन्त्र 10
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - कुष्ठः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कुष्ठनाशन सूक्त

    शी॑र्षलो॒कं तृती॑यकं सद॒न्दिर्यश्च॑ हाय॒नः। त॒क्मानं॑ विश्वधावीर्याध॒राञ्चं॒ परा॑ सुव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शी॒र्ष॒ऽलो॒कम्। तृ॒तीय॑कम्। स॒द॒म्ऽदिः। यः। च॒। हा॒य॒नः। त॒क्मान॑म्। वि॒श्व॒धा॒ऽवी॒र्य॒। अ॒ध॒राञ्च॑म्। परा॑। सु॒व॒ ॥३९.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शीर्षलोकं तृतीयकं सदन्दिर्यश्च हायनः। तक्मानं विश्वधावीर्याधराञ्चं परा सुव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शीर्षऽलोकम्। तृतीयकम्। सदम्ऽदिः। यः। च। हायनः। तक्मानम्। विश्वधाऽवीर्य। अधराञ्चम्। परा। सुव ॥३९.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 39; मन्त्र » 10

    टिप्पणीः - इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध आ चुका है-अ०५।२२।३॥१०−(शीर्षलोकम्) शिरसि स्थानयुक्तम्। मस्तकपीडकम् (तृतीयकम्) अ०१।२५।४। स्वार्थे कन्। तृतीयदिने आगच्छन्तम् (सदन्दिः) अ०५।२२।१३। सदम्+दाप् छेदने दो अवखण्डने वा-कि। सदा खण्डकम्। पीडकम् (यः) (च) (हायनः) अ०६।१४।३। हायन-अर्शआद्यच्। प्रतिवर्षभवः (तक्मानम्) कृच्छ्रजीवनकरं ज्वरम् (विश्वधावीर्य) हे सर्वथा सामर्थ्योपेत (अधराञ्चम्) अ०५।२२।३। निम्नदेशम् (परा) दूरे (सुव) प्रेरय ॥

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