अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 49/ मन्त्र 5
सूक्त - गोपथः, भरद्वाजः
देवता - रात्रिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
शि॒वां रात्रि॑मनु॒सूर्यं॑ च हि॒मस्य॑ मा॒ता सु॒हवा॑ नो अस्तु। अ॒स्य स्तोम॑स्य सुभगे॒ नि बो॑ध॒ येन॑ त्वा॒ वन्दे॒ विश्वा॑सु दि॒क्षु ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒वाम्। रात्रि॑म्। अ॒नु॒ऽसूर्य॑म्। च॒। हि॒मस्य॑। मा॒ता। सु॒हवा॑। नः॒। अ॒स्तु॒। अ॒स्य। स्तोम॑स्य। सु॒ऽभ॒गे॒। नि। बो॒ध॒। येन॑। त्वा॒। वन्दे॑। विश्वासु। दि॒क्षु ॥४९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
शिवां रात्रिमनुसूर्यं च हिमस्य माता सुहवा नो अस्तु। अस्य स्तोमस्य सुभगे नि बोध येन त्वा वन्दे विश्वासु दिक्षु ॥
स्वर रहित पद पाठशिवाम्। रात्रिम्। अनुऽसूर्यम्। च। हिमस्य। माता। सुहवा। नः। अस्तु। अस्य। स्तोमस्य। सुऽभगे। नि। बोध। येन। त्वा। वन्दे। विश्वासु। दिक्षु ॥४९.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 5
सूचना -
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः - ५−(शिवाम्) कल्याणीम् (रात्रिम्) (अनुसूर्यम्) सूर्यमनुसृत्य (च) समुच्चये (हिमस्य) शीतलत्वस्य (माता) निर्मात्री भवतीति शेषः (सुहवा) सुखेन ह्वातव्या (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) (अस्य) क्रियमाणस्य (स्तोमस्य) स्तोत्रस्य (सुभगे) हे बह्वैश्वर्यवति (नि) नितराम् (बोध) ज्ञानं कुरु (येन) स्तोमेन (त्वा) त्वाम् (वन्दे) आदरेण नमामि (विश्वासु) सर्वासु (दिक्षु) ॥
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