Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 25 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 25/ मन्त्र 9
    ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः देवता - सोमः छन्दः - विराडार्षीपङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    त्वं नो॑ वृत्रहन्त॒मेन्द्र॑स्येन्दो शि॒वः सखा॑ । यत्सीं॒ हव॑न्ते समि॒थे वि वो॒ मदे॒ युध्य॑मानास्तो॒कसा॑तौ॒ विव॑क्षसे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । नः॒ । वृ॒त्र॒ह॒न्ऽत॒म॒ । इन्द्र॑स्य । इ॒न्दो॒ इति॑ । शि॒वः । सखा॑ । यत् । सी॒म् । हव॑न्ते । स॒म्ऽइ॒थे । वि । वः॒ । मदे॑ । युध्य॑मानाः । तो॒कऽसा॑तौ । विव॑क्षसे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं नो वृत्रहन्तमेन्द्रस्येन्दो शिवः सखा । यत्सीं हवन्ते समिथे वि वो मदे युध्यमानास्तोकसातौ विवक्षसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । नः । वृत्रहन्ऽतम । इन्द्रस्य । इन्दो इति । शिवः । सखा । यत् । सीम् । हवन्ते । सम्ऽइथे । वि । वः । मदे । युध्यमानाः । तोकऽसातौ । विवक्षसे ॥ १०.२५.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 25; मन्त्र » 9
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 12; मन्त्र » 4

    व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज -

    व्याख्याः शृङ्गी मुनि कृष्ण दत्त जी महाराज

    वास्तविक मित्र

    यहाँ एक दूसरे का जो मिलन है वह शत्रुता का मिलन हो गया है। परन्तु शत्रुता का मिलन वह कहलाता है जो मानव मानव को अपने दूषित विचारों में परणित कर देता है, वह शत्रुता वाली मित्रता है। हे मानव! तू उस मित्रता को धारण न करे। क्योंकि मित्रता को धारण कर मित्रता में परणित रहने वाली ही मित्रता है। मित्र का मित्र कौन है, तुम वायु नहीं चाहते परमात्मा वायु प्रदान करता है। अहा! वह कैसा मित्र है, मानो देखो, यथार्थ मित्र वह है जो दुर्गुणों से मानव को सदगुणों की प्रेरणा देने वाला हो। मेरे पूज्यपाद गुरुदेव मेरे यथार्थ मित्र बनें। क्योंकि मैंने बाल्यकाल में नाना प्रकार के अपराध किये। परन्तु पूज्यपाद गुरुदेव ने अनुपम कृपा से मेरी प्रतिभा को जागरूक करते हुए मानो मेरी वह गति बना दी कि मैं जीवन मुक्त की वेदी पर आ गया। कैसी विचित्रता होती है। परन्तु देखो, तप की महिमा की एक विचित्र धारा होती है। जिस धारा को जानने के लिए मानव मानव को सदैव अपने जीवन को ऊँचा बनाना एक मानवता कहलाता है। आज जिस गृह में हमारी वह आकाशवाणी प्रकाशित हो रही है पूज्यपाद! वंधनम् मेधां च अस्वती स पुत्राः।-पूज्य महानन्द जी।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top