ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 157/ मन्त्र 1
ऋषिः - भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - द्विपदात्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
इ॒मा नु कं॒ भुव॑ना सीषधा॒मेन्द्र॑श्च॒ विश्वे॑ च दे॒वाः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मा । नु । क॒म् । भुव॑ना । सी॒स॒धा॒म॒ । इन्द्रः॑ । च॒ । विश्वे॑ । च॒ । दे॒वाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा नु कं भुवना सीषधामेन्द्रश्च विश्वे च देवाः ॥
स्वर रहित पद पाठइमा । नु । कम् । भुवना । सीसधाम । इन्द्रः । च । विश्वे । च । देवाः ॥ १०.१५७.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 157; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
विषय - त्रिलोकी का आधिपत्य
पदार्थ -
[१] हम (नु) = अब (इमा) = इन (भुवना) = शरीर, मन व मस्तिष्क रूप लोकों को (सीषधाम्) = साधित करें, इन्हें अपने वश में करें। शरीर, मन व मस्तिष्क पर हमारा आधिपत्य हो। [२] इस वशीकरण प्रक्रिया के होने पर (इन्द्रः च) = वह परमैश्वर्यशाली प्रभु (च) = और (विश्वेदेवाः) = सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, पृथिवी, जल, तेज, वायु आदि सब देव (कम्) = सुख को [सीषधाम - साधयत सा० ] सिद्ध करें।
भावार्थ - भावार्थ- हमारा अपनी शरीर, मन, मस्तिष्क रूप त्रिलोकी पर आधिपत्य हो । सूर्य आदि सब देवों के द्वारा प्रभु हमें सुखी करें।
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