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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 24/ मन्त्र 6
    ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः देवता - अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    मधु॑मन्मे प॒राय॑णं॒ मधु॑म॒त्पुन॒राय॑नम् । ता नो॑ देवा दे॒वत॑या यु॒वं मधु॑मतस्कृतम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधु॑ऽमत् । मे॒ । प॒रा॒ऽअय॑णम् । मधु॑ऽमत् । पुनः॑ । आऽअय॑नम् । ता । नः॒ । दे॒वा॒ । दे॒वत॑या । यु॒वम् । मधु॑ऽमतः । कृ॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधुमन्मे परायणं मधुमत्पुनरायनम् । ता नो देवा देवतया युवं मधुमतस्कृतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मधुऽमत् । मे । पराऽअयणम् । मधुऽमत् । पुनः । आऽअयनम् । ता । नः । देवा । देवतया । युवम् । मधुऽमतः । कृतम् ॥ १०.२४.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 24; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 10; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    [१] गत मन्त्र के अनुसार जो पुरुष प्राणसाधना से सब इन्द्रियों को सशक्त बनाकर मोक्ष मार्ग की ओर चलता है उस पुरुष के जीवन में माधुर्य होता है। इसकी कामना यह होती है कि (मे) = मेरा (परायणं) = बाहर जाना (मधुमत्) = माधुर्य को लिये हुए हो । (मे) = मेरा (पुनः) = फिर (आयनम्) = आना- लौटना (मधुमत्) = मिठास वाला हो। मेरा आना-जाना, इसी प्रकार उठना-बैठना, बोलना - चालना सभी कुछ मधुर ही हो। मेरी सब क्रियाएँ मिठास को लिये हुए हों। [२] हे (देवा) = दिव्यगुणों वाले प्राणापानो! (ता युवम्) = वे आप दोनों (नः) = हमें (देवतया) = उस देवता के हेतु से, अर्थात् प्रभु प्राप्ति के उद्देश्य से (मधुमतः) = माधुर्य वाला कृतम् कर दीजिये । प्रभु को वही प्राप्त करता है जो कि अपने में माधुर्य को भरता है । यह माधुर्य प्राणसाधना से ही प्राप्त होता है ।

    भावार्थ - भावार्थ - प्राणसाधना से जीवन मधुर बनता है। मधुर जीवन ही हमें प्रभु को प्राप्त कराता है । सूक्त का प्रारम्भ इन शब्दों से हुआ है कि हम सोम का रक्षण करें, यह हमारे जीवन को मधुर बनायेगा । [१] हम यज्ञों, उक्थों व हव्यों से प्रभु का आराधन करें, प्रभु हमें वार्य धन प्राप्त करायेंगे, [२] हम द्वेष व पाप से ऊपर उठकर प्रभुरक्षण के पात्र बनें, [३] प्राणसाधना से हमें 'शक्ति, प्रज्ञा व कर्म-पवित्रता' प्राप्त होगी, [४] प्राणापान की गति से ही इन्द्रियाँ सशक्त बनती हैं, [५] इस प्राणसाधना से ही जीवन मधुर बनता है, [६] अब प्रभु कृपा से हमारा मन भद्र मार्ग का ही आक्रमण करता है।

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