ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 79/ मन्त्र 1
ऋषिः - अग्निः सौचीको, वैश्वानरो वा, सप्तिर्वा वाजम्भरः
देवता - अग्निः
छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अप॑श्यमस्य मह॒तो म॑हि॒त्वमम॑र्त्यस्य॒ मर्त्या॑सु वि॒क्षु । नाना॒ हनू॒ विभृ॑ते॒ सं भ॑रेते॒ असि॑न्वती॒ बप्स॑ती॒ भूर्य॑त्तः ॥
स्वर सहित पद पाठअप॑श्यम् । अ॒स्य॒ । म॒ह॒तः । म॒हि॒ऽत्वम् । अम॑र्त्यस्य । मर्त्या॑सु । वि॒क्षु । नाना॑ । हनू॒ इति॑ । विभृ॑ते॒ इति॒ विऽभृ॑ते । सम् । भ॒रे॒ते॒ इति॑ । असि॑न्वती॒ इति॑ । बप्स॑ती॒ इति॑ । भूरि॑ । अ॒त्तः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अपश्यमस्य महतो महित्वममर्त्यस्य मर्त्यासु विक्षु । नाना हनू विभृते सं भरेते असिन्वती बप्सती भूर्यत्तः ॥
स्वर रहित पद पाठअपश्यम् । अस्य । महतः । महिऽत्वम् । अमर्त्यस्य । मर्त्यासु । विक्षु । नाना । हनू इति । विभृते इति विऽभृते । सम् । भरेते इति । असिन्वती इति । बप्सती इति । भूरि । अत्तः ॥ १०.७९.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 79; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
विषय - जबड़ों की अद्भुत रचना
पदार्थ -
[१] (अस्य) = इस (अमर्त्यस्य) = कभी न मरनेवाले (महतः) = महान् प्रभु की (महित्वम्) = महिमा को (मर्त्यासु विक्षु) = इन मर्त्य प्रजाओं के अन्दर (अपश्यम्) = देखता हूँ। इन मरणधर्मा शरीरों में क्या अद्भुत ही रचना है। ये (नाना) = अलग-अलग (हनू) = जबड़े (विभृते) = ऊपर और नीचे विभिन्न स्थितियों में धारण किये गये हैं । ये (संभरेते) = विभृत होते हुए भी मिलकर पुरुष का भरण करते हैं । इन्हीं से भोजन का चूर्णन व चर्वण होता है, इस चूर्णन व चर्वण के अभाव में भोजन का पाचन ही नहीं हो पाता । ३२ दाँतों की संख्या से यही संकेत हो रहा है कि कम से कम प्रत्येक ग्रास ३२ बार अवश्य चबाया जाए। [२] (असिन्वती बप्सती) = [ असिन्व imsetiable] अतृप्तिपूर्वक खाते हुए [प्सा भक्षणे] ये जबड़े (भूरि अत्तः) = [भृः धारणपोषणयोः] धारण व पोषण के दृष्टिकोण से ही खाते हैं। ये कभी अति भोजन नहीं खाते, कभी ऐसा नहीं होता कि ये कहा जाए कि ' अरे ! पेट बड़ा भर गया' । वस्तुतः खूब चबाने का अभ्यस्त पुरुष अति- भोजन से बचा ही रहता है। भोजन को इतना चबाया जाए कि वह द्रव बन जाए। इस प्रकार हम इस उक्ति को क्रियान्वित करनेवाले बने कि 'drink your food' ।
भावार्थ - भावार्थ - शरीर की रचना में यह जबड़ों की रचना बड़ी ही अद्भुत है, ये भोजन को शरीर के पालन व पोषण के योग्य बना देते हैं। इनमें द्रष्टा को प्रभु की महिमा दिखती है।
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