Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 7 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 7/ मन्त्र 6
    ऋषिः - सोमाहुतिर्भार्गवः देवता - अग्निः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    द्र्व॑न्नः स॒र्पिरा॑सुतिः प्र॒त्नो होता॒ वरे॑ण्यः। सह॑सस्पु॒त्रो अद्भु॑तः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्रुऽअ॑न्नः । स॒र्पिःऽआ॑सुतिः । प्र॒त्नः । होता॑ । वरे॑ण्यः । सह॑सः । पु॒त्रः । अद्भु॑तः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्र्वन्नः सर्पिरासुतिः प्रत्नो होता वरेण्यः। सहसस्पुत्रो अद्भुतः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्रुऽअन्नः। सर्पिःऽआसुतिः। प्रत्नः। होता। वरेण्यः। सहसः। पुत्रः। अद्भुतः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 7; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 28; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    १. वे प्रभु [द्रु+ अन्नः] (द्र्वन्नः) = वनस्पतिरूप अन्नवाले हैं, अर्थात् प्रभुप्राप्ति के लिए वानस्पतिक भोजन ही अपेक्षित है। माँसाहार हमें भौतिक प्रवृत्तिवाला बनाता है-प्रभु की भावना से दूर करता है। गाय का घृत ही प्रभु के अभिषव का साधन है [सु-अभिषवे] । गोघृत का प्रयोग बुद्धि को तीव्र करता है और यह तीव्रबुद्धि प्रभुदर्शन में साधन बनती है। २. यह तीव्र बुद्धि प्रभु को इस रूप में देखती है कि वे प्रभु (प्रत्नः) = अत्यन्त चिरन्तन व पुराण हैं | (होता) सब कुछ देनेवाले हैं। (वरेण्यः) = ये प्रभु सर्वथा वरण के योग्य हैं। जीव के सामने प्रकृति और परमात्मा दोनों उपस्थित हैं। सामान्यतः जीव आपातरमणीय प्रकृति की ओर झुकता है और अन्ततः कष्टों को प्राप्त करता है। ज्ञानी पुरुष प्रभु का वरण करके वास्तविक आनन्द का भागी होता है। (सहसः पुत्रः) = वे प्रभु शक्ति के पुतले हैं, सर्वशक्तिमान् हैं। वस्तुतः अद्भुत, अनुपम हैं। संसार की किसी भी वस्तु से प्रभु की उपमा नहीं दी जा सकती। वे अलौकिक व दिव्य हैं ।

    भावार्थ - भावार्थ - प्रभुदर्शन के लिए आवश्यक है कि हम वानस्पतिक भोजन व घृत के प्रयोग को करते हुए तीव्रबुद्धिवाले बनें ।

    - प्रभु से ' श्रेष्ठ ज्योतिर्मय पुरुस्पृह' रयि की प्रार्थना से सूक्त का आरम्भ हुआ है। भक्त की प्रार्थना है कि हमारे में अदान की भावना न हो (२) द्वेष से हम ऊपर उठें (३) हमारा जीवन पवित्र हो। इस पवित्रता के लिए हम इन्द्रिय संयम- वीर्यरक्षण व योगमार्ग को महत्त्व दें (५) वानस्पतिक भोजन व घृत प्रयोग करें। अगले सूक्त में भी प्रभु का स्तवन चलता है और कहते हैं कि

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top