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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 62/ मन्त्र 1
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - रथवीतिर्दाल्भ्यः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ऋ॒तेन॑ ऋ॒तमपि॑हितं ध्रु॒वं वां॒ सूर्य॑स्य॒ यत्र॑ विमु॒चन्त्यश्वा॑न्। दश॑ श॒ता स॒ह त॑स्थु॒स्तदेकं॑ दे॒वानां॒ श्रेष्ठं॒ वपु॑षामपश्यम् ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒तेन॑ । ऋ॒तम् । अपि॑ऽहितम् । ध्रु॒वम् । वा॒म् । सूर्य॑स्य । यत्र॑ । वि॒ऽमु॒चन्ति॑ । अश्वा॑न् । दश॑ । श॒ता । स॒ह । त॒स्थुः॒ । तत् । एक॑म् । दे॒वाना॑म् । श्रेष्ठ॑म् । वपु॑षाम् । अ॒प॒श्य॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतेन ऋतमपिहितं ध्रुवं वां सूर्यस्य यत्र विमुचन्त्यश्वान्। दश शता सह तस्थुस्तदेकं देवानां श्रेष्ठं वपुषामपश्यम् ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतेन। ऋतम्। अपिऽहितम्। ध्रुवम्। वाम्। सूर्यस्य। यत्र। विऽमुचन्ति। अश्वान्। दश। शता। सह। तस्थुः। तत्। एकम्। देवानाम्। श्रेष्ठम्। वपुषाम्। अपश्यम् ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 62; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 30; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] 'मित्र' की आराधना का भाव है 'सब के प्रति स्नेहवाला होना'। 'वरुण' की आराधना का भाव है 'द्वेष-निवारणवाला होना, किसी के प्रति द्वेष का न होना'। एवं 'सब के साथ स्नेह, किसी के प्रति द्वेष नहीं' यही 'मित्रावरुण' का आराधन है। इस आराधन के होने पर (ध्रुवम्) = निश्चय से (वाम्) = आपके लिये, मित्र व वरुण के लिये, (ऋतेन) = ऋत से (ऋतम्) = ऋत ही (अपिहितम्) = आच्छादित है, अर्थात् जीवन ऋतमय बन जाता है। अमृत मात्र 'द्वेष' का परिणाम है, द्वेष गया तो अमृत भी गया। यह वह जीवन बनता है (यत्र) = जहाँ (सूर्यस्य अश्वान्) = सूर्य के अश्वों के (विमुचन्ति) = राक्षसी आक्रमणों से मुक्त करते हैं। अमृत के चले जाने पर सब इन्द्रियाश्व इस प्रकार दीप्त हो उठते हैं, जैसे कि वे सूर्य के अश्व हों। [२] (दश शता) = हजारों सूर्यरश्मियाँ (सह) = साथ-साथ (तस्थुः) = स्थित होती हैं, (शतश) = ज्ञान-किरणों से जीवन-गगन दीप्त हो उठता है। मैं भी मित्र व वरुण की आराधना करके (वपुषां देवानाम्) = [वपुष्मता] श्रेष्ठ शरीरवाले देवों के (तत् एकं श्रेष्ठम्) = उस एक श्रेष्ठ शरीर को (अपश्यम्) = देखूँ, अपने शरीर को देवों का शरीर बना पाऊँ । हो जाता है, [२] इन्द्रियाश्व

    भावार्थ - भावार्थ – 'मित्र-वरुण' की आराधना से [१] जीवन ऋतमय सूर्य की तरह चमक उठते हैं, [३] जीवन ज्ञानसूर्य से चमक उठता है, [४] हमारा शरीर देव शरीर बन जाता है।

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