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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    वृषा॒ मद॒ इन्द्रे॒ श्लोक॑ उ॒क्था सचा॒ सोमे॑षु सुत॒पा ऋ॑जी॒षी। अ॒र्च॒त्र्यो॑ म॒घवा॒ नृभ्य॑ उ॒क्थैर्द्यु॒क्षो राजा॑ गि॒रामक्षि॑तोतिः ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृषा॑ । मदः॑ । इन्द्रे॑ । श्लोकः॑ । उ॒क्था । सचा॑ । सोमे॑षु । सु॒त॒ऽपाः । ऋ॒जी॒षी । अ॒र्च॒त्र्यः॑ । म॒घऽवा॑ । नृऽभ्यः॑ । उ॒क्थैः । द्यु॒क्षः । राजा॑ । गि॒राम् । अक्षि॑तऽऊतिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषा मद इन्द्रे श्लोक उक्था सचा सोमेषु सुतपा ऋजीषी। अर्चत्र्यो मघवा नृभ्य उक्थैर्द्युक्षो राजा गिरामक्षितोतिः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषा। मदः। इन्द्रे। श्लोकः। उक्था। सचा। सोमेषु। सुतऽपाः। ऋजीषी। अर्चत्र्यः। मघऽवा। नृऽभ्यः। उक्थैः। द्युक्षः। राजा। गिराम्। अक्षितऽऊतिः ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] (इन्द्रे) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु में (श्लोकः) = यशोगान, प्रभु कीर्ति का कीर्तन (वृषा) = सब कामनाओं का वर्षण करनेवाला व (मदः) = उल्लास का जनक है। (उक्था) = स्तोत्रों के द्वारा (सचा) = समवेत, हमारे साथ स्थापित सम्बन्धवाला प्रभु (सोमेषु) = सोमों के उत्पन्न होने पर (सुतपा:) = उन उत्पन्न सोमों का रक्षक होता है और (ऋजीषी) = [ऋजु इष] सरल मार्ग से प्रेरणा देनेवाला होता है । [२] इसलिए वह (मघवा) = ऐश्वर्यशाली प्रभु (नृभ्यः) = मनुष्यों से (उक्थैः अर्चत्र्यः) = स्तोत्रों के द्वारा पूजनीय होता है । (द्युक्षाः) = वह ज्ञान-ज्योति में निवास करनेवाला है। (राजा) = सारे संसार का व्यवस्थापक है। (गिरां अक्षितोतिः) = ये प्रभु सब ज्ञान की वाणियों के अक्षीण रक्षक हैं। इन ज्ञान-वाणियों के अक्षीण [भण्डार] हैं। सब वेद वाणियों के सदा से धारण करनेवाले ये प्रभु इन ज्ञान की वाणियों को सृष्टि के प्रारम्भ में हमारे लिए देते हैं और सृष्टि समाप्ति पर ये वाणियाँ उस प्रभु में ही निवास करती हैं। इस प्रकार यह वेद प्रभु का अजरामर काव्य सदा अक्षीण रहता है ।

    भावार्थ - भावार्थ– प्रभु-स्तवन सब कामनाओं को पूर्ण करता है, उल्लास को देता है, सोम का रक्षण करता है । सो प्रभु ही स्तोत्रों द्वारा पूज्य है।

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