ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
ततु॑रिर्वी॒रो नर्यो॒ विचे॑ताः॒ श्रोता॒ हवं॑ गृण॒त उ॒र्व्यू॑तिः। वसुः॒ शंसो॑ न॒रां का॒रुधा॑या वा॒जी स्तु॒तो वि॒दथे॑ दाति॒ वाज॑म् ॥२॥
स्वर सहित पद पाठततु॑रिः । वी॒रः । नर्यः॑ । विऽचे॑ताः । श्रोता॑ । हव॑म् । गृ॒ण॒तः । उ॒र्विऽऊ॑तिः । वसुः॑ । शंसः॑ । न॒राम् । का॒रुऽधा॑याः । वा॒जी । स्तु॒तः । वि॒दथे॑ । दा॒ति॒ । वाज॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ततुरिर्वीरो नर्यो विचेताः श्रोता हवं गृणत उर्व्यूतिः। वसुः शंसो नरां कारुधाया वाजी स्तुतो विदथे दाति वाजम् ॥२॥
स्वर रहित पद पाठततुरिः। वीरः। नर्यः। विऽचेताः। श्रोता। हवम्। गृणतः। उर्विऽऊतिः। वसुः। शंसः। नराम्। कारुऽधायाः। वाजी। स्तुतः। विदथे। दाति। वाजम् ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 24; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
विषय - नर्यो विचेताः
पदार्थ -
[१] वे प्रभु (ततुरिः) = शत्रुओं के हिंसक हैं, (वीरः) = वीर हैं, शत्रुओं को कम्पित करके दूर करनेवाले हैं। (नर्यः) = नरहितकारी (विचेताः) = विशिष्ट ज्ञानवाले हैं। (गृणतः) = स्तोता की (हवं श्रोता) = पुकार को सुननेवाले हैं। (उर्व्यूतिः) = विशाल रक्षणवाले हैं। [२] अपनी रक्षण व्यवस्था के द्वारा (वसुः) = हमें बसानेवाले, (शंस:) = हमारे लिए ज्ञान का उपदेश करनेवाले हैं। (कारुधायाः) = कुशलता से कार्यों को करनेवालों का धारण करनेवाले हैं। (वाजी) = शक्तिशाली हैं। (विदथे) = ज्ञानयज्ञों में (स्तुत:) = स्तुति किये गए ये प्रभु (नराम्) = मनुष्यों के लिए (वाजं दाति) = शक्ति को देते हैं ।
भावार्थ - भावार्थ- वे प्रभु शत्रुओं के हिंसक हैं। स्तोताओं को ज्ञान व शक्ति को देनेवाले हैं। इस प्रकार नरों के हित के साधक हैं।
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