ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 36/ मन्त्र 1
स॒त्रा मदा॑स॒स्तव॑ वि॒श्वज॑न्याः स॒त्रा रायोऽध॒ ये पार्थि॑वासः। स॒त्रा वाजा॑नामभवो विभ॒क्ता यद्दे॒वेषु॑ धा॒रय॑था असु॒र्य॑म् ॥१॥
स्वर सहित पद पाठस॒त्रा । मदा॑सः । तव॑ । वि॒श्वऽज॑न्याः । स॒त्रा । रायः॑ । अध॑ । ये । पार्थि॑वासः । स॒त्रा । वाजा॑नाम् । अ॒भ॒वः॒ । वि॒ऽभ॒क्ता । यत् । दे॒वेषु॑ । धा॒रय॑थाः । असु॒र्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सत्रा मदासस्तव विश्वजन्याः सत्रा रायोऽध ये पार्थिवासः। सत्रा वाजानामभवो विभक्ता यद्देवेषु धारयथा असुर्यम् ॥१॥
स्वर रहित पद पाठसत्रा। मदासः। तव। विश्वऽजन्याः। सत्रा। रायः। अध। ये। पार्थिवासः। सत्रा। वाजानाम्। अभवः। विऽभक्ता। यत्। देवेषु। धारयथाः। असुर्यम् ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 36; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
विषय - 'आनन्द - धन-बल- तेज'
पदार्थ -
[१] हे प्रभो ! (तव) = आपके (मदासः) = सोम-रक्षण द्वारा प्राप्त कराये गये आनन्द (सत्रा) = सचमुच (विश्वजन्याः) = सब मनुष्यों के लिये हितकर होते हैं। (अध) = अब (ये) = जो आप से दिये (पार्थिवासः रायः) = पार्थिव धन है वे भी सब मनुष्यों के लिये हितकर होते हैं । [२] (सत्रा) = सचमुच (वाजानाम्) = शक्तियों के (विभक्ता) = हमारे लिये देनेवाले होते हैं । (यद्) = जो (देवेषु) = देवों में (असुर्यम्) = बल है, उसे (धारयथा:) = आप ही धारण करते हैं। सूर्यादि में आपका ही हैं, तेजस्वी पुरुषों में भी आपका ही तेज है।
भावार्थ - भावार्थ- प्रभु ही 'आनन्दों- धनों-शक्तियों व तेजों' को प्राप्त कराते हैं ।
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