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ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 102/ मन्त्र 1
ऋषिः - वसिष्ठः कुमारो वाग्नेयः
देवता - पर्जन्यः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
प॒र्जन्या॑य॒ प्र गा॑यत दि॒वस्पु॒त्राय॑ मी॒ळ्हुषे॑ । स नो॒ यव॑समिच्छतु ॥
स्वर सहित पद पाठप॒र्जन्या॑य । प्र । गा॒य॒त॒ । दि॒वः । पु॒त्राय॑ । मी॒ळ्हुषे॑ । सः । नः॒ । यव॑सम् । इ॒च्छ॒तु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पर्जन्याय प्र गायत दिवस्पुत्राय मीळ्हुषे । स नो यवसमिच्छतु ॥
स्वर रहित पद पाठपर्जन्याय । प्र । गायत । दिवः । पुत्राय । मीळ्हुषे । सः । नः । यवसम् । इच्छतु ॥ ७.१०२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 102; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
विषय - सर्वोत्पादक परमेश्वर १
पदार्थ -
पदार्थ- हे विद्वान् लोगो! (दिवः पुत्राय) = सूर्य से उत्पन्न, सूर्य के पुत्र व (मीढुषे) = सेचन करने में समर्थ, (पर्जन्याय) = जल दाता मेघ सदृश ज्ञान-प्रकाश से बहुतों के रक्षक और हृदय में आनन्द के सेचक, (पर्जन्याय) = सब रसों के दाता, सबके उत्पादक, परमेश्वर के लिये (प्र गायत) = अच्छी प्रकार स्तुति करो। (सः) = वह (न:) = हमें (यवसम्) = अन्नादि देना (इच्छतु) = चाहे।
भावार्थ - भावार्थ- ज्ञान के प्रकाश से हृदय को आनन्द देनेवाले, बादलों से जल बरसाकर प्रसन्नता देनेवाले तथा समस्त रसों व अन्नादि को बनाकर जीवन देनेवाले सर्वोत्पादक परमेश्वर की स्तुति करने की विधि विद्वान् लोग सब मनुष्यों को बताया करें।
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