ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 38/ मन्त्र 8
वाजे॑वाजेऽवत वाजिनो नो॒ धने॑षु विप्रा अमृता ऋतज्ञाः। अ॒स्य मध्वः॑ पिबत मा॒दय॑ध्वं तृ॒प्ता या॑त प॒थिभि॑र्देव॒यानैः॑ ॥८॥
स्वर सहित पद पाठवाजे॑ऽवाजे । अ॒व॒त॒ । वा॒जि॒नः॒ । नः॒ । धने॑षु । वि॒प्राः॒ । अ॒मृ॒ताः॒ । ऋ॒त॒ऽज्ञाः॒ । अ॒स्य । मध्वः॑ । पि॒ब॒त॒ । मा॒दय॑ध्वम् । तृ॒प्ताः । या॒त॒ । प॒थिऽभिः॑ । दे॒व॒ऽयानैः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वाजेवाजेऽवत वाजिनो नो धनेषु विप्रा अमृता ऋतज्ञाः। अस्य मध्वः पिबत मादयध्वं तृप्ता यात पथिभिर्देवयानैः ॥८॥
स्वर रहित पद पाठवाजेऽवाजे। अवत। वाजिनः। नः। धनेषु। विप्राः। अमृताः। ऋतऽज्ञाः। अस्य। मध्वः। पिबत। मादयध्वम्। तृप्ताः। यात। पथिऽभिः। देवऽयानैः ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 38; मन्त्र » 8
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 8
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 8
विषय - उत्तम पुरुष सन्मार्गगामी बनावें
पदार्थ -
पदार्थ - हे (वाजिनः विप्राः) = बलवान्, ज्ञानवान् विद्या- पूर्ण जनो! (अमृताः) = दीर्घायु, ब्रह्मज्ञो! हे (ऋतज्ञाः) = वेद के ज्ञाता जनो! आप (वाजे-वाजे) = प्रत्येक संग्राम में (नः अवत) = हमारी रक्षा करो। (नः धनेषु) = हमारे धनों के आश्रय पर (अस्य मध्वः पिबत) = इस मधुर सुख और अन्न का उपभोग करो। (मादयध्वं) = प्रसन्न रहो और (तृप्ताः) = तृप्त होकर देव- (यानैः) = विद्वानों से जाने योग्य (पथिभिः) = मार्गों से (यात) = जाया करो।
भावार्थ - भावार्थ- वेद के ज्ञान से युक्त विद्वान् दीर्घायु को प्राप्त कर सत्य वेदज्ञान से जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान करें। सदा प्रसन्न रहने व अन्न का उपभोग करने हेतु सदैव सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा करते रहें। अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ और देवता विश्वे देवा है।
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