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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 39/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ऊ॒र्ध्वो अ॒ग्निः सु॑म॒तिं वस्वो॑ अश्रेत्प्रती॒ची जू॒र्णिर्दे॒वता॑तिमेति। भे॒जाते॒ अद्री॑ र॒थ्ये॑व॒ पन्था॑मृ॒तं होता॑ न इषि॒तो य॑जाति ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊ॒र्ध्वः । अ॒ग्निः । सु॒ऽम॒तिम् । वस्वः॑ । अ॒श्रे॒त् । प्र॒ती॒ची । जू॒र्णिः । दे॒वऽता॑तिम् । ए॒ति॒ । भे॒जाते॑ । अद्री॒ इति॑ । र॒थ्या॑ऽइव । पन्था॑म् । ऋ॒तम् । होता॑ । नः॒ । इ॒षि॒तः । य॒जा॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्ध्वो अग्निः सुमतिं वस्वो अश्रेत्प्रतीची जूर्णिर्देवतातिमेति। भेजाते अद्री रथ्येव पन्थामृतं होता न इषितो यजाति ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्ध्वः। अग्निः। सुऽमतिम्। वस्वः। अश्रेत्। प्रतीची। जूर्णिः। देवऽतातिम्। एति। भेजाते। अद्री इति। रथ्याऽइव। पन्थाम्। ऋतम्। होता। नः। इषितः। यजाति ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 39; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    पदार्थ- (ऊर्ध्वः) = उदात्त मार्ग से जानेवाला (अग्निः) = अग्नि- तुल्य तेजस्वी (वस्वः) = अधीन बसानेवाले आचार्य वा प्रभु की (सुमतिम्) = शुभ मति का (अश्रेत्) = सेवन करे। (प्रतीची) = प्रत्यक्ष प्राप्त (जूर्णिः) = वृद्धावस्था (देवतातिम्) = मनुष्यों के हितकारी कार्य में (एति) = लगे। (अद्री) = अनिन्दित स्त्री-पुरुष (रथ्या इव) = रथ में जुड़े अश्वों के समान (ऋतम्) = सन्मार्ग का (भेजाते) = सेवन करें। (इषितः) = इच्छावान् पुरुष (होता न) = दाता के तुल्य (यजाति) दान, सत्संग करे।

    भावार्थ - भावार्थ- ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी अग्नि के समान तेजस्वी बनने के लिए आचार्य के अधीन रहकर श्रेष्ठ बुद्धि एवं ज्ञान का सेवन करे। इनसे प्रेरणा पाकर वृद्धजन समाज सेवा के कार्य में लगें । उत्तम स्त्री-पुरुष लोगों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा करें तथा जिज्ञासु जन दान देवें व सत्संग करें।

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