ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 62/ मन्त्र 6
नू मि॒त्रो वरु॑णो अर्य॒मा न॒स्त्मने॑ तो॒काय॒ वरि॑वो दधन्तु । सु॒गा नो॒ विश्वा॑ सु॒पथा॑नि सन्तु यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठनु । मि॒त्रः । वरु॑णः । अ॒र्य॒मा । नः॒ । त्मने॑ । तो॒काय॑ । वरि॑वः । द॒ध॒न्तु॒ । सु॒ऽगा । नः॒ । विश्वा॑ । सु॒ऽपथा॑नि । स॒न्तु॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नू मित्रो वरुणो अर्यमा नस्त्मने तोकाय वरिवो दधन्तु । सुगा नो विश्वा सुपथानि सन्तु यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठनु । मित्रः । वरुणः । अर्यमा । नः । त्मने । तोकाय । वरिवः । दधन्तु । सुऽगा । नः । विश्वा । सुऽपथानि । सन्तु । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.६२.६
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 62; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 6
विषय - शासक का कर्त्तव्य
पदार्थ -
पदार्थ- (नु) = अवश्य, शीघ्र ही (मित्रः) = स्नेहवान् और सर्वमित्र विद्वान् (वरुणः) = श्रेष्ठ पुरुष और (अर्यमा) = न्यायकारी पुरुष (नः) = हमारे (त्मने) = अपने लिये (नः तोकाय) = हमारे पुत्र के लिये भी (वरिवः) = उत्तम धन (दधन्तु) = दें जिससे (न:) = हमारे (विश्वा) = सब कार्य (सुगा) = सुगम और (सुपथानि) = उत्तम मार्ग युक्त (सन्तु) = हों। हे विद्वान् जनो! (यूयं नः सदा स्वस्तिभिः पात) = आप हमारी सदा कल्याण-साधनों से रक्षा करें।
भावार्थ - भावार्थ- राजा को योग्य है कि वह अपने राज्य में उत्तम विद्वानों तथा निष्पक्ष पुरुषों को न्यायाधीश नियुक्त करें। जिससे प्रजा ज्ञानी होकर पुरुषार्थ पूर्वक धन कमावे तथा उत्तम न्याय प्राप्त कर राष्ट्र में सुरक्षित रहकर सुखी एवं समृद्ध होवे। अगले सूक्त का भी ऋषि वसिष्ठ और देवता सूर्य व मित्रावरुण ही हैं।
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