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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 66 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 66/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    या धा॒रय॑न्त दे॒वाः सु॒दक्षा॒ दक्ष॑पितरा । अ॒सु॒र्या॑य॒ प्रम॑हसा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । धा॒रय॑न्त । दे॒वाः । सु॒ऽदक्षा॑ । दक्ष॑ऽपितरा । अ॒सु॒र्या॑य । प्रऽम॑हसा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या धारयन्त देवाः सुदक्षा दक्षपितरा । असुर्याय प्रमहसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । धारयन्त । देवाः । सुऽदक्षा । दक्षऽपितरा । असुर्याय । प्रऽमहसा ॥ ७.६६.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 66; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    पदार्थ- (देवा:) = विद्वान् मनुष्य (या) = जिन दो को (धारयन्त) = व्रत धारण कराते हैं वे आप दोनों (सु-दक्षा) = उत्तम कर्मकुशल (दक्षपितरा) = बल वीर्य के पालक, (प्र-महसा) = उत्तम तेजस्वी होकर (असुर्याय) = बलवान् पुरुषों में श्रेष्ठ पद के योग्य होते हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- विद्वान् जन उत्तम कर्मकुशल तथा सदाचारी तेजस्वी पुरुषों को श्रेष्ठ पदों के लिए नामित करें। इससे राष्ट्र में भ्रष्टाचार नहीं होगा।

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