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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 81 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 81/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - उषाः छन्दः - विराडबृहती स्वरः - मध्यमः

    प्रत्यु॑ अदर्श्याय॒त्यु१॒॑च्छन्ती॑ दुहि॒ता दि॒वः । अपो॒ महि॑ व्ययति॒ चक्ष॑से॒ तमो॒ ज्योति॑ष्कृणोति सू॒नरी॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रति॑ । ऊँ॒ इति॑ । अ॒द॒र्शि॒ । आ॒ऽय॒ती । उ॒च्छन्ती॑ । दु॒हि॒ता । दि॒वः । अपो॒ इति॑ । महि॑ । व्य॒य॒ति॒ । चक्ष॑से । तमः॑ । ज्योतिः॑ । कृ॒णो॒ति॒ । सू॒नरी॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रत्यु अदर्श्यायत्यु१च्छन्ती दुहिता दिवः । अपो महि व्ययति चक्षसे तमो ज्योतिष्कृणोति सूनरी ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रति । ऊँ इति । अदर्शि । आऽयती । उच्छन्ती । दुहिता । दिवः । अपो इति । महि । व्ययति । चक्षसे । तमः । ज्योतिः । कृणोति । सूनरी ॥ ७.८१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 81; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 1; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    पदार्थ - जैसे (दिवः दुहिता) = सूर्य की पुत्री के समान प्रकाश से जगत् को पूर्ण करनेवाली (उषा आयती) = आती हुई और (उच्छन्ती) = प्रकट होती हुई (प्रति अदर्शि उ) = स्पष्ट दिखाई देती है, वह (महि तमः) = बड़े अन्धकार को (अप व्ययति उदूर) = करती है और (चक्षसे) = सबको दिखलाने के लिये (ज्योतिः कृणोति) = प्रकाश करती है वैसे ही (सूनरी) = उत्तम विदुषी स्त्री, (दिवः दुहिता) = सब कामनाओं, व्यवहारों को पूर्ण करनेवाली, (आयती) = आती हुई, (उच्छन्ती) = गुणों को प्रकट करती हुई, (प्रति अदर्शि) = प्रतिदिन दिखाई दे। वह (चक्षसे) = सम्यग् दर्शन करने और अन्यों को उपदेश करने के लिये (महि तमः अपो) = व्ययति बहुत अन्धकार, अज्ञान को दूर करे और (ज्योतिः कृणोति) ज्ञान-प्रकाश करे।

    भावार्थ - भावार्थ-विदुषी स्त्री अपने उत्तम व्यवहारों तथा शुभ संकल्पों के द्वारा समस्त कामनाओं को पूर्ण करे, और अपने सद्गुणों के द्वारा प्रतिष्ठा प्राप्त करे। अपने ज्ञान के उपदेश द्वारा अन्यों के अज्ञान का नाश कर ज्ञान का प्रकाश करे।

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