ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 85/ मन्त्र 5
इ॒यमिन्द्रं॒ वरु॑णमष्ट मे॒ गीः प्राव॑त्तो॒के तन॑ये॒ तूतु॑जाना । सु॒रत्ना॑सो दे॒ववी॑तिं गमेम यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒यम् । इन्द्र॑म् । वरु॑णम् । अ॒ष्ट॒ । मे॒ । गीः । प्र । आ॒व॒त् । तो॒के । तन॑ये । तूतु॑जाना । सु॒ऽरत्ना॑सः । दे॒वऽवी॑तिम् । ग॒मे॒म॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इयमिन्द्रं वरुणमष्ट मे गीः प्रावत्तोके तनये तूतुजाना । सुरत्नासो देववीतिं गमेम यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठइयम् । इन्द्रम् । वरुणम् । अष्ट । मे । गीः । प्र । आवत् । तोके । तनये । तूतुजाना । सुऽरत्नासः । देवऽवीतिम् । गमेम । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.८५.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 85; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
विषय - श्रेष्ठ की प्रशंसा
पदार्थ -
पदार्थ- (मे) = मेरी (इयं गी:) = यह वाणी (इन्द्रं) = शत्रुनाशक और (वरुणं) = श्रेष्ठ पुरुष को अष्टलक्ष्य करके हो। वह (तूतुजाना) = ज्ञान को देती हुई (तनये तोके) = पुत्र-पौत्रादि तक को (प्र अवत्) = प्राप्त हो । (वयम्) = हम (सु-रत्नासः) = शुभ रत्नों और रम्य गुणों को धारण करते हुए (देववीतिं गमेम) = विद्वानों के ज्ञान-प्रकाश और सत्कामना को (गमेम) = प्राप्त करें। हे विद्वान् लोगो! (यूयं नः सदा स्वस्तिभिः पात) = आप सदा हमारी उत्तम साधनों के द्वारा पालन एवं रक्षा करें।
भावार्थ - भावार्थ- राष्ट्र भक्त जन शत्रुओं की निंदा व श्रेष्ठ पुरुषों की प्रशंसा करें। पुरुषार्थ पूर्वक धन कमाएँ तथा विद्वानों के उपदेशों से सत्प्रेरणा प्राप्त करें। अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ तथा देवता वरुण है।
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