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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ई॒ळेन्यो॑ वो॒ मनु॑षो यु॒गेषु॑ समन॒गा अ॑शुचज्जा॒तवे॑दाः। सु॒सं॒दृशा॑ भा॒नुना॒ यो वि॒भाति॒ प्रति॒ गावः॑ समिधा॒नं बु॑धन्त ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ई॒ळेन्यः॑ । वः॒ । मनु॑षः । यु॒गेषु॑ । स॒म॒न॒ऽगाः । अ॒शु॒च॒त् । जा॒तऽवे॑दाः । सु॒ऽस॒न्दृशा॑ । भा॒नुना॑ । यः । वि॒ऽभाति॑ । प्रति॑ । गावः॑ । स॒म्ऽइ॒धा॒नम् । बु॒ध॒न्त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ईळेन्यो वो मनुषो युगेषु समनगा अशुचज्जातवेदाः। सुसंदृशा भानुना यो विभाति प्रति गावः समिधानं बुधन्त ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ईळेन्यः। वः। मनुषः। युगेषु। समनऽगाः। अशुचत्। जातऽवेदाः। सुऽसन्दृशा। भानुना। यः। विऽभाति। प्रति। गावः। सम्ऽइधानम्। बुधन्त ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 9; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    [१] (वः) = हमारे (मनुषः युगेषु) = मानव जोड़ों में, दम्पतियों में, पति-पत्नी में (ईडेन्यः) = वह प्रभु स्तुत्य हैं। पति-पत्नी को मिलकर प्रातः प्रभु स्मरण अवश्य करना ही चाहिये। ये पति-पत्नी आदर्शगृह का निर्माण कर पाते हैं। यह (जातवेदा:) = सर्वज्ञ प्रभु (समनगाः) = संग्राम में संगत होता है। अर्थात् हम काम-क्रोध आदि से संग्राम करते हैं। तो ये प्रभु हमारे सहायक होते हैं। (अशुधत्) = हृदयदेश में दीप्त होते हैं। [२] (सुसन्दृशा) = उत्तम दर्शनीय (भानुना) = दीप्ति से (यः विभाति) = जो प्रभु विशिष्ट दीप्तिवाले हैं, उस (समिधानम्) = सम्यक् देदीप्यमान प्रभु को (गाव:) = सब वेदवाणियाँ प्रतिबुधन्त ज्ञापित करती हैं, ये सब वाणियाँ प्रभु का ही ज्ञान देती हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- दम्पती मिलकर प्रातः प्रभुस्तवन करें। काम-क्रोध आदि से संग्राम में ये प्रभु ही हमारे सहायक होते हैं। सब वेद-वाणियाँ इस प्रकाशमय प्रभु का प्रतिपादन करती हैं।

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