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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 28/ मन्त्र 5
    ऋषिः - मनुर्वैवस्वतः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स॒प्ता॒नां स॒प्त ऋ॒ष्टय॑: स॒प्त द्यु॒म्नान्ये॑षाम् । स॒प्तो अधि॒ श्रियो॑ धिरे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒प्ता॒नाम् । स॒प्त । ऋ॒ष्टयः॑ । स॒प्त । द्यु॒म्नानि॑ । ए॒षा॒म् । स॒प्तो इति॑ । अधि॑ । श्रियः॑ । धि॒रे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सप्तानां सप्त ऋष्टय: सप्त द्युम्नान्येषाम् । सप्तो अधि श्रियो धिरे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सप्तानाम् । सप्त । ऋष्टयः । सप्त । द्युम्नानि । एषाम् । सप्तो इति । अधि । श्रियः । धिरे ॥ ८.२८.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 28; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 35; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    [१] 'सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे' इस मन्त्रभाग के अनुसार शरीर में सात ऋषियों का धारण हुआ है। इन (सप्तानाम्) = सातों ऋषियों के (सप्त ऋषयः) = सात आयुध हैं। इन आयुधों के द्वारा ही तो ये अपना कार्य कर पायेंगे। 'कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्' दो कान, दो नासा - छिद्र, दो आँखें व मुख ही इनके आयुध हैं। (एषाम्) = इनके (सप्त द्युम्नान्) = सात ज्ञानधन हैं। इन ज्ञानधनों की प्राप्ति के साधन ही वे कान आदि हैं। [२] (उ) = निश्चय से (सप्त) = ये सात ऋषि (श्रियः) = शोभाओं को (अधि धिरे) = आधिक्येन धारण करनेवाले होते हैं। वस्तुत: यह शरीर इन सात ऋषियों का ही आश्रम है। इस आश्रम की शोभा इनके साथ ही है।

    भावार्थ - भावार्थ- शरीर में सात ऋषि रहते हैं। सात इनके आयुध हैं जिनके द्वारा ये ज्ञानधनों को प्राप्त करते हैं। ये सात ही इस शरीर को शोभा सम्पन्न बनाते हैं।

    - सूचना - मरुतों को भी सात भागों में बाँटा गया है। ये मरुत्त्राण भी यहाँ लिये जा सकते हैं। राष्ट्रपरक अर्थ करते समय सात राज्यांग यहाँ विवक्षित होंगे 'स्वाम्यमात्य सुहृत् कोशराष्ट्र दुर्ग वलानि च' 'वैवस्वत मनु' ही अगले सूक्त का भी ऋषि है-

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