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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 75 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 75/ मन्त्र 1
    ऋषिः - विरुपः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    यु॒क्ष्वा हि दे॑व॒हूत॑माँ॒ अश्वाँ॑ अग्ने र॒थीरि॑व । नि होता॑ पू॒र्व्यः स॑दः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒क्ष्व । हि । दे॒व॒ऽहूत॑मान् । अश्वा॑न् । अ॒ग्ने॒ । र॒थीःऽइ॑व । नि । होता॑ । पू॒र्व्यः॑ । स॒दः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युक्ष्वा हि देवहूतमाँ अश्वाँ अग्ने रथीरिव । नि होता पूर्व्यः सदः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युक्ष्व । हि । देवऽहूतमान् । अश्वान् । अग्ने । रथीःऽइव । नि । होता । पूर्व्यः । सदः ॥ ८.७५.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 75; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    हे (अग्ने) = अग्रणी ! तू (रथी इव अश्वान्) = जैसे रथी अश्वों को जोड़ता है उसी प्रकार (देवहूतमान्) = योग्यजनों को (युव) = जोड़। होता = दाता (पूर्व्यः) = पूर्ण होकर (नि सदः) = विराज ।

    भावार्थ - भावार्थ-अधिकारी योग्यतम व्यक्ति की नियुक्ति करे, तथा पूर्ण वेतनादि की व्यवस्था करे ।

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